श्री कृष्ण अपने शीश पर मोर पंख क्यों धारण करते हैं?

एक भक्ति से भरे मोर की कहानी, जिसने राधा रानी की करुणा से पाया श्री कृष्ण का प्रेम और आशीर्वाद।
बहुत पहले समय की बात है। गोकुल में एक बहुत चंचल और सुंदर मोर रहता था। वह मोर श्री कृष्ण का सच्चा भक्त था। वह हर दिन बस एक ही काम करता था, कृष्ण के द्वार पर बैठकर भजन करता रहता था।
“मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे,
गोपाल सांवरिया मेरे…”
इस तरह कई दिन बीत गए और एक साल हो गया। वह मोर नित्य श्री कृष्ण के द्वार पर आता और भजन करता रहता , पर श्री कृष्ण मोर की ओर कोई ध्यान नहीं देते। वो रोज़ आता, वही गीत गाता, और चुपचाप लौट जाता।
एक दिन निराशा के कारण,मोर की आँखें भर आईं। भाव विभोर होने के कारण उसकी आंखों से आसूं बहने लगे,पर कोई सुनने वाला नहीं था। तभी आकाश में उड़ती हुई एक मैना वहां से गुज़री। मोर को यूँ रोते देखा तो हैरान रह गई
की भला, “कृष्ण के द्वार पर कोई दुखी हो सकता है?” वो नीचे उतरी और मोर से पूछा, क्यों रो रहे हो?
मोर ने कहा, एक साल से कृष्ण के द्वार पर बैठकर उनका नाम गा रहा हूँ,पर उन्होंने कभी मुझे देखा तक नहीं।
मैना मुस्कराई और बोली, मैं बरसाने से आई हूँ। आओ तुम भी मेरे साथ बरसाने चलो,राधा रानी के पास। वो बहुत करुणामयी हैं। राधा रानी तुम्हें ज़रूर अपनाएंगी। मोर तैयार हो गया और दोनों उड़कर बरसाने पहुंचे।
वहाँ मैना ने राधा रानी के द्वार पर मधुर सुरों में गाना शुरू किया
“श्री राधे राधे, राधे बरसाने वाली राधे…”
लेकिन मोर अब भी वही रट लगाए था
“मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे, गोपाल सांवरिया मेरे…”
राधा रानी ने यह सुना तो तुरंत बाहर आईं। उन्होंने मोर को देखा,और उसे प्रेम से गले लगा लिया। राधा ने मोर से पूछा बता, तू कहां से आया है ?
उस मोर की आँखों से फिर आँसू बह निकले, वह रोते हुए बोला, राधे रानी! सुना था आप दया की मूर्ति हैं,आज अनुभव भी कर लिया। मैं एक साल तक कृष्ण का नाम जपता रहा,पर उन्होंने एक बार भी मेरी तरफ देखा भी नहीं और ना ही मुझे एक बार भी पानी पिलाया। पर आपने तो बस मेरा स्वर सुनते ही मुझे गले लगा लिया।
राधा मुस्कराईं और बोलीं, मेरा कान्हा ऐसा नहीं है। तू एक बार फिर गोकुल जा, लेकिन इस बार कृष्ण-कृष्ण नहीं, ‘राधे-राधे’ जपना।
मोर ने राधा की बात मानी और फिर गोकुल लौट आया । इस बार उसने द्वार पर बैठकर जोर से गाना शुरू किया
जय राधे राधे!
श्री कृष्ण ने जब ये सुना तो दौड़े हुए द्वार पर आये। उन्होंने मोर को अपने हृदय से लगते हुए पूछा हे प्रिय मोर तुम कहाँ से आये हो?
तब वह मोर मुस्कराया,और बोला वाह रे नटखट! जब एक साल तक तेरा नाम जपता रहा, तब तो तुम्हें फुर्सत नहीं मिली। अब राधे नाम जपा, तो दौड़ता चला आया!
कृष्ण मुस्कुराये और बोले,अरे! पूरी बात तो बता।
उस मोर ने सारा हाल कह सुनाया। कृष्ण कुछ पल मौन रहे और फिर बोले,मुझसे भूल हुई कि मैंने तुम्हारी कोई सेवा की। लेकिन तू धन्य है तूने राधा का नाम लिया। इसलिए मैं तुम्हे वरदान देता हूँ जब तक ये सृष्टि रहेगी,तेरा एक पंख हमेशा मेरे मुकुट पर सजेगा। और जो भी प्रेम से राधे का नाम लेगा, वो भी मेरे हृदय में स्थान पाएगा।
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