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वट सावित्री व्रत कथा: पतिव्रता नारी की शक्ति और प्रेम की अमर गाथा | Vat Savitri Vrat Katha in Hindi</title

वट सावित्री व्रत कथा
भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति, श्रद्धा और संकल्प की प्रतिमूर्ति माना गया है। वट सावित्री व्रत इसी भावना का प्रतीक है, जिसे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए ज्येष्ठ मास की अमावस्या को करती हैं। इस व्रत से जुड़ी कथा सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम गाथा को दर्शाती है।

राजा अश्वपति की तपस्या और सावित्री का जन्म

भद्र देश के राजा अश्वपति संतानहीन थे। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए 18 वर्षों तक देवी सावित्री की उपासना की और प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अंततः देवी सावित्री प्रकट हुईं और उन्हें एक तेजस्वी कन्या का वरदान दिया। कन्या का नाम रखा गया — सावित्री।

सावित्री का स्वयंवर और सत्यवान से प्रेम

सावित्री जब विवाह योग्य हुईं तो राजा ने योग्य वर खोजने के लिए उसे स्वयं यात्रा करने की अनुमति दी। सावित्री ने तपोवन में रहने वाले साल्व देश के निष्कासित राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपना वर चुना।

नारद मुनि की चेतावनी और सावित्री का दृढ़ निश्चय

जब ऋषिराज नारद (Rishiraj Narad) को इस बात का पता चला तो वे राजा अश्वपति के पास पहुँचे और उनसे बोले, हे राजन! आप क्या कर रहे हो? सत्यवान गुणवान, धर्मात्मा और बलवान है, लेकिन उसकी उम्र बहुत कम है, वह अल्पायु है। एक वर्ष बाद ही सत्यवान की मृत्यु हो जायेगी। नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति बहुत चिंतित हुए।

जब सावित्री ने उससे कारण पूछा तो राजा ने कहा, पुत्री, तुमने जिस राजकुमार को अपना वर चुना है, वह अल्पायु है। तुम्हें किसी और को अपना जीवनसाथी चुन लेना चाहिए. अपने पिता को जवाब देते हुए सावित्री ने कहा कि पिताजी आर्य लड़कियां अपने पति से एक बार ही विवाह करती हैं बार-बार नहीं! जिस प्रकार पंडित एक बार ही वचन देते हैं और राजा एक बार ही आदेश देता है ठीक उसी प्रकार कन्यादान भी एक बार ही होता है ।

सावित्री जिद पर अड़ गई और बोली, मैं सत्यवान से ही विवाह (marriage) करूंगी। बेटी की जिद के आगे हार गया पिता राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से किया।

व्रत और सत्यवान की मृत्यु का दिन

सावित्री विवाह के बाद अपने अंधे सास-ससुर की सेवा में लगी रहीं। मृत्यु की तिथि से तीन दिन पहले उन्होंने उपवास शुरू कर दिया। प्रतिदिन की भाँति सत्यवान, सावित्री के साथ जंगल में लकड़ी काटने गये। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया। तभी अचानक सत्यवान के सिर में तेजी से दर्द शुरू हो गया, सत्यवान दर्द से परेशान होकर पेड़ से नीचे उतर गये। 

सावित्री को अपना भविष्य समझ आ गया. सावित्री ने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रख लिया और उसे सहलाने लगी। तभी वहां यमराज (Yamraj) आते दिखे. यमराज सत्यवान को अपने साथ ले जाने लगे। सावित्री भी उसके पीछे-पीछे चल दी। यमराज ने सावित्री को समझाने की बहुत कोशिश की कि यह विधि का विधान है और इसे बदला नहीं जा सकता। लेकिन सावित्री इसे मानने को तैयार नहीं हुई.

यमराज से वार्तालाप और सावित्री की विजय

यमराज ने सावित्री की निष्ठा को देखकर सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। मुझसे कोई वरदान मांगो, मैं अवश्य तुम्हारे वरदान को पूर्ण करूंगा ।
सावित्री ने यमराज से 3 वरदान मांगे।

  • सास-ससुर को दिव्य दृष्टि मिले।
  • ससुर को पुनः राज्य प्राप्त हो।
  • उसे 100 पुत्रों का सौभाग्य प्राप्त हो।

तीसरे वरदान के साथ ही यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। सत्यवान जीवित हो गया और दोनों अपने राज्य लौटे जहां सास-ससुर को दृष्टि मिल चुकी थी और ससुर को राज्य वापस मिला।

व्रत का महत्व

यह कथा नारी शक्ति, निष्ठा और पतिव्रता धर्म की अद्वितीय मिसाल है। वट सावित्री व्रत करने से वैवाहिक जीवन में सुख, समृद्धि और सुरक्षा मिलती है।

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